भरत के तप से हुआ, रावण का वध : कथा व्यास डॉ वेदांती महाराज

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पीयूष वालिया

भरत के तप से हुआ, रावण का वध : कथा व्यास डॉ वेदांती महाराज
*** श्रीमद् बाल्मीकिय श्रीराम कथा में कथा व्यास ने किया राम-भरत मिलाप का भावुक वर्णन
*** भरत के चरित्र को सुनकर भाव विभोर हुए श्रोतागण

हरिद्वार। हिंदू धाम संस्थापक एवं वशिष्ठ भवन पीठाधीश्वर महंत डॉ रामविलास दास वेदांती महाराज ने कहा कि भगवान राम ने रावण का वध नहीं किया अपितु रावण का वध राजा भरत की तपस्या के चलते संभव हुआ। उन्होंने कहा रामायण में भरत ही एक ऐसा पात्र है, जिसमें स्वार्थ व परमार्थ दोनों को समान दर्जा दिया गया। इसलिए भरत का चरित्र अनुकरणीय है। भरत चरित्र का प्रत्येक प्रसंग धर्म सार है क्योंकि भरत का सिद्धांत लक्ष्य की प्राप्ति व राम के प्रेम को दर्शाता है।

श्री वशिष्ठ भवन धर्मार्थ सेवा ट्रस्ट के तत्वावधान में प्रेमनगर आश्रम, हरिद्वार में चल रही संगीतमयी श्रीमद् बाल्मीकिय श्रीराम कथा के सातवें दिन कथा व्यास डॉ रामविलास दास वेदांती महाराज ने राम- भरत मिलाप के प्रसंग का भावुक वर्णन किया।भरत मिलाप का प्रसंग सुन कथा प्रेमी आंसू नहीं रोक पाए। कथा व्यास डॉ रामविलास दास वेदांती महाराज कहा कि अयोध्या से श्री राम के 14 वर्ष वनवास जाने के उपरांत भरत के मामा घर से आने के बाद सीधे माता के कैकई और राम भैया को ढूंढते हुए उनके कक्ष में जाते हैं। उन्हें इसका आभास तक नहीं होने दिया कि उनके प्राण प्रिय भैया और भाभी 14 वर्ष के बनवास को अयोध्या से निकल गए। जानकारी होते ही वे रोते बिलखते और कैकई माता को कोसते हुए कहते हैं पुत्र कुपुत्र हो सकता है मगर माता कुमाता नहीं होती। इस बात को तुमने सिद्ध किया है माता कुमाता होती है। यह कलंक यह पाप मेरे सर पर लगा। लोग क्या कहेंगे। भरत ने अपने भाई को राजगद्दी के लिए बनवास करा दिया। तभी कौशल्या और सुमित्रा दोनों भरत को समझाती है कि पिताजी अब इस दुनिया में नहीं रहे। आओ उनका अंतिम संस्कार कर भैया को ढूंढने जाएंगे। राजा दशरथ की मृत्यु की खबर सुनकर भरत रोने लगते हैं। कर्म पूरा कर अयोध्या से अपनी तीनों मां के साथ अपने भाई को वापस लाने के लिए निकल पड़ते हैं। पीछे-पीछे प्रजा चल पड़े। निषाद राज से जानकारी लेकर भरत अपने माताओं के साथ चित्रकूट पर्वत पर जाते हैं। जहां लक्ष्मण जंगल से लकड़ियां चुन रहे थे। जैसे ही चक्रवर्ती सेना और भरत को आते देखा। आग बबूला होकर राम के पास आते हैं और कहते हैं कि भरत बड़ी सेना के साथ हमारी ओर बढ़ रहा है। तभी राम मुस्कुराते हुए कहते हैं ठहर जाओ। अनुज भरत को आने तो दो। भरत राम के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगते हैं। फिर राम गले से लगाते हैं। भरत मिलाप के बाद तीनों माताओं का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेते हैं और माता सीता भी अपनी तीनों सास के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेती हैं। उसके बाद भरत पिता के बारे में राम से कहते हैं कि अब हमारे बीच पिता श्री नहीं रहे यह शब्द सुनकर श्री राम और सीता लक्ष्मण व्याकुल हो शोकाकुल रहने के बाद राम को अपने साथ ले जाने के लिए भरत मिन्नतें करते हैं। मंत्री सुमंत और प्रजा गण बार-बार उन्हें अपने साथ जाने के लिए मनाते हैं। मगर श्री राम कहते हैं कि पिता के दिए हुए वचन का मर्यादा नहीं टूटे। इसके लिए हमें यहां रहने की अनुमति दें। रघुकुल रीति सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाई। यह कहकर लेने आए सभी लोगों को चुप करा देते हैं मगर भरत मानने के लिए तैयार नहीं होते हैं। तब राम ने कहा प्रजा हित के लिए तुम्हें जाओ, अयोध्या के प्रजा जनों को देखना है। साथ में माताओं का भी दायित्व निर्वाह करना है। भरत ने श्री राम के चरण पादुका को अपने सर पर उठाकर आंखों में अश्रु के साथ वहां से विदा होते हैं। 14 वर्ष तक श्री राम के चरण पादुका को अयोध्या के राज सिंहासन पर रखकर खुद जमीन पर चटाई बिछाकर सन्यासी का जीवन व्यतीत करते हुए राजपाट संभालते हैं। कथा व्यास ने कहा कि श्रीराम भरत जैसा आदर्श प्रेम विश्वास के किसी साहित्य में देखने को सुनने को नहीं मिलता। श्रीराम ने पिता की आज्ञा को सर्वोपरि मानकर मर्यादा की सौगंध देकर भरत से अयोध्या का राज सिंहासन संभालने का आदेश दिया। भरत ने सिंहासन चलाने के लिए प्रभु श्रीराम से उनकी चरण पादुका मांग ली। जब तक श्री राम अयोध्या वापस नहीं आएंगे, राजकाज चलाने में उन्हीं चरण पादुकाओं का आदेश मानकर राज से दूर नंदीग्राम में रहकर राजकाज का कार्य संपन्न किया जाएगा।
कथा में पूर्वांचल उत्थान संस्था के अध्यक्ष एवं श्रीराम कथा आयोजन मंडल समिति के संयोजक सीए आशुतोष पांडेय की शादी की वर्षगांठ धूमधाम से मनाया गया। इस मौके पर कथा संचालक डॉ राघवेश दास वेदांती महाराज, नगरपालिका शिवालिक नगर के निवर्तमान चैयरमेन राजीव शर्मा, वरिष्ठ समाजसेवी एवं भाजपा नेत्री रंजीता झा, उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के आचार्य पं शैलेष तिवारी, श्री भगवानदास संस्कृत आदर्श महाविद्यालय के आचार्य दीपक कोठारी, भगवतकथाचार्य आचार्य उद्धव मिश्र, भागीरथ जनकल्याण समिति के अध्यक्ष मदन मोहन यादव, अनिल सिंह, सुनील सिंह, रूपलाल यादव, अजय राय, वरूण कुमार सिंह, काली प्रसाद साह, निर्मल ठाकुर, अमित गोयल, अमित साही, धनंजय सिंह, चंदन सिंह, ज्ञानेंद्र सिंह, कमलेश सिंह, नीलम राय, अपराजिता सिंह, मिकी सिंह, रश्मि झा, वाणी झा, किशोरी झा, शांति झा, ऊषा झा, सुनीता सिंह, श्वेता तिवारी, रामनवल पांडेय, अनामिका शर्मा, संतोष कुमार सहित अन्य गणमान्य लोग मौजूद रहे।

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