संतोष कुमर
हरिद्वार। चुनावी शोर के बीच स्थानीय मुद्दे हवा हवाई होते नजर आ रहे है। जहां एक ओर भाजपा प्रत्याशी त्रिवेन्द्र सिंह रावत अपनी स्थिति मजबूत करने के चलते देहरादून जनपद के अन्तर्गत आने वाली विधानसभा सीटों पर अधिक ध्यान दे रहे है तो वहीं, दूसरी ओर हरिद्वार जनपद की 11 विधनसभा सीटों में से हरिद्वार नगर, रुड़की और रानीपुर को छोड़ दे तो अन्य सीटों पर त्रिवेन्द्र की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। मदन गुट के सहारे चुनावी वेतरणी पार करने की जुगत में लगे त्रिवेन्द्र के समर्थन में हरिद्वार पहंुचे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के कार्यक्रम की खाली पड़ी कुर्सियों का नजरा हो या फिर रुड़की में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यक्रम में खाली पड़ी कुर्सिया दोनों मामलों ने भाजपा के स्थानीय नेतृत्व के माथे में शिकन डाल दी है। जोर शोर से चुनाव प्रचार प्रारम्भ करने वाले त्रिवेन्द्र प्रचार के अंतिम चरण के आते-आते शिथिल पड़ते नजर आ रहे है। तो वहीं, दूसरी ओर शुरू में कमजोर प्रत्याशी माने जा रहे कांग्रेस उम्मीदवार विरेन्द्र रावत के प्रचार ने एकाएक तेजी पकड़ी है। कांग्रेस के तमाम कार्यक्रमों में उमड़ रही कार्यकर्ताओं की भीड़ कांग्रेस नेताओं के लिये उत्साह पैदा कर रही है। अमूमन गुटों में बटी रहने वाली कांग्रेस इस लोकसभा चुनाव में एक जुट नजर आ रही है। जिला, महानगर, ब्लाक स्तर पर कार्यकर्ताओं की लम्बी चैड़ी फौज विरेन्द्र रावत के लिये हरिद्वार की 11 की 11 विधानसभा सीटों पर रात-दिन एक किये हुये है। वहीं, दूसरी ओर जनपद देहरादून की विधानसभा सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी की स्थिति कमजोर मानी जा रही है। कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि मुख्य मुकाबला कांग्रेस के विरेन्द्र रावत और भाजपा के त्रिवेन्द्र के बीच ही होगा। अगर त्रिवेन्द्र एनवक्त पर भी गुटो में बटी भाजपा को एकजुट करने में कामयाब रहते है तो परिणाम उनके पक्ष में भी जाने से इंकार नहीं किया जा सकता। दोनों प्रमुख दलों के अतिरिक्त बसपा से चुनावी मैदान में डटे मौलाना जमील अहमद का हाल यह है कि मौलाना अब तक हरिद्वार लोकसभा के क्षेत्रों में पूर्णरूप से प्रचार के लिये भी नहीं पहंुच सके है। जिस उम्मीद के साथ बसपा ने इस सीट से मौलाना को उतारा वह उम्मीद मतदाताओं के लिहाज से धूमिल होती नजर आ रही है। मौलाना जमील के अतिरिक्त निर्दलीय ताल ठोक रहे खानपुर विधायक उमेश शर्मा भले ही सोशल मीडिया पर तेजी दिखाते हुए दमखम के साथ चुनाव लड़ने का दावा करते है लेकिन धरातल पर उमेश शर्मा के चुनाव जीतने के दावे में भी दम नजर नहीं आ रहा है। चुनाव प्रचार के अंतिम दौर तक पहंुचते पहंुचते उमेश की स्थिति आम मतदाताओं के बीच वोट कटवा प्रत्याशी बनकर रह गई है, उमेश शर्मा के संबंध में वायरल हो रही एक कथित वीडियो ने उमेश के चुनाव में आग में घी का काम किया है।
इस दृष्टि से कहा जा सकता है कि इस लोकसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी मौलाना जमील और उमेश शर्मा के बीच तीसरे और चैथे नम्बर पर आने की लड़ाई बाकी रह गई है।