बाघम्बरी मठ प्रयागराज के श्रीमहंत नरेन्द्र गिरि की सदिग्ध मौत का मामला कोर्ट में विचाराधीन

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पीयूष वालिया अर्चना धींगरा 

 

 

हरिद्वार। बाघम्बरी मठ प्रयागराज के श्रीमहंत नरेन्द्र गिरि की सदिग्ध मौत का मामला कोर्ट में विचाराधीन होने के बाद भी मामले में नित नए मोड़ आ रहे हैं। हाल ही में नरेन्द्र गिरि के शिष्य अमर गिरि ने कोर्ट में हलफनामा देकर उनके द्वारा एफआईआर दर्ज ना कराने और मुकद्मा वापस लेने की गुहार लगायी। तो वहीं अमर गिरि को एकाएक बड़े हनुमान मंदिर से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इतना ही नहीं पवन महाराज को भी निकाल दिया गया। मामला सूर्खियों में आया तो मंगलवार देर रात रविन्द्र पुरी हरिद्वार से प्रयागराज मामले को निपटाने के लिए पहुंच गए। इसके साथ ही आज ही कोर्ट में आनन्द गिरि की जमानत पर सुनवाई भी होनी है।

 

 

इन सबके बावजूद बड़ा सवाल यह कि क्या अमर गिरि को बडे हनुमान मंदिर से निकाला जा सकता था। बता दें कि अपनी मौत से पूर्व नरेन्द्र गिरि का एक पत्र सामने आया था। जिसमें उन्होंने बलवीर पुरी को बाघम्बरी का उत्तराधिकारी बताया था। साथ ही अमर गिरि और पवन महाराज का विशेष ख्याल रखने की भी बात कही थी। इतना ही नहीं अपनी मौत से पूर्व नरेन्द्र गिरि ने स्वंय बड़े हनुमान मंदिर का अमर गिरि को व्यवस्थापक बनाया था। बावजूद इसके आनन्द गिरि मामले में केस वापसी का हलफनामा देने के तत्काल बाद ही उन्हंे मंदिर से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

 

 

ऐसे में संतों के बीच चर्चा है कि जब नरेन्द्र गिरि स्वंय अमर गिरि को बड़े हनुमान मंदिर का व्यवस्थापक नियुक्त कर गए थे तो उन्हें कैसे निकाला जा सकता है। संतों का कहना है कि जब अपने अंतिम पत्र में नरेन्द्र गिरि ने अमर गिरि और पवन महाराज का विशेष ख्याल रखने की बात कही तो उस पर अमल क्यों नहीं किया जा रहा है। यदि पत्र में लिखी बात सत्य है तो अमर गिरि और पवन महाराज को निकाला जाना गलत है। जबकि पत्र में साफ-साफ लिखा है कि अमर गिरी मंदिर की व्यवस्था में सदा रहेंगे। यदि पत्र में लिखित बातों की अवहेलना की जा रही है तो फिर पत्र की अन्य बातों को भी गलत माना जाए। इस आधार पर आनंद गिरी भी किसी प्रकार से गलत साबित नहीं होते। कुल मिलाकर नरेन्द्र गिरि के अंतिम पत्र जिसे वसीयत माना जा रहा है उस पर आधा अमल ही किया जा रहा है। यदि ऐसा नहीं होता तो अमर गिरि और पवन महाराज को निकाला नहीं जा सकता था।

 

वहीं दूसरी ओर केंद्रीय कारागार नैनी में बंद आनंद गिरि को अपशब्द कहने के साथ ही जान से मारने की धमकी देने का आरोप उसके अधिवक्ता ने जेल के डिप्टी सुपरिटेंडेंट पर लगाया है। आनंद गिरि को प्रताडि़त करने की भी बात कही है। इसकी शिकायत प्रमुख सचिव गृह समेत डीएम और एसएसपी से की गई है।

महंत नरेंद्र गिरि की मृत्यु के प्रकरण में जेल में बंद आनंद गिरि से मिलने मंगलवार शाम उसके अधिवक्ता विजय कुमार द्विवेदी अपने साथी बृज बिहारी के साथ पहुंचे। विजय कुमार द्विवेदी का कहना है कि शाम 5.10 बजे आनंद गिरि मुलाकात करने आए। आरोप है कि उसी समय डिप्टी सुपरिटेंडेंट आरके सिंह ने अंगुली से इशारा करते हुए आनंद गिरि को बुलाया। अपशब्द कहते हुए जेल में ही हत्या कराने की धमकी दी। अपनी कुर्सी से खड़े होकर आनंद गिरि को मारने के लिए झपटे। तैनात सिपाहियों को भी मारने के लिए ललकारा। यह देखकर वह बीच-बचाव करने लगे तो उनको भी जान से मारने की धमकी दी गई। विजय कुमार द्विवेदी का कहना है कि उन्होंने वरिष्ठ जेल अधीक्षक से मिलकर पूरी बात बताई। इसके बाद प्रमुख सचिव गृह, डीएम और एसएसपी को प्रार्थना पत्र भेजा।

विजय का कहना है कि जेल में आनंद गिरि का उत्पीड़न किया जा रहा है। एक घंटे स्नान और पूजन का समय दिया जाता है, शेष समय उनको जबरन बंद रखा जाता है। डिप्टी सुपरिटेंडेंट पर उन्होंने कई आरोप लगाए हैं। इस पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच की मांग अधिकारियों से की है।

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