पीयूष वालिया
मोबाईल की लत
सोशल मीडिया के इस युग में मोबाईल क्रांति लोगों के सर चढ़कर बोल रही है। वर्तमान परिदृश्य में परिवारों की दिनचर्या का बड़ा हिस्सा मोबाईल बन चुका है। सुबह-शाम, रात-दिन मोबाईल का साथ अब तो सभी को लुभाने लगा है। मोबाईल यूजर कुछ समय की दूरी भी ना-गवार लगने लगी है। प्रत्येक घर परिवारों में बड़े से लेकर छोटे मोबाईल का उपयोग खूब कर रहे हैं। माता-पिता, पति-पत्नी, चाचा-चाची, मामा-मामी, ताऊ-ताई सभी मोबाईल में व्यस्त हैं। अब तो घर परिवारों में नाना-नानी की कहानी भी गायब हो चली है। बच्चे नाना-नानी की कहानियों से भी मेहरूम हो चले हैं। बुजुर्ग भी मोबाईल का जमकर इस्तेमाल करने लगे हैं। मोबाईल क्रांति के चलते मोबाईल लोगों का सशक्त माध्यम बन गया है। मोबाईल के बिना जीवन की डोर अधूरी सी लगने लगी है। आम और खास सभी के जीवन का अभिन्न हिस्सा मोबाईल बन चुका है। परिवारों मंे आपसी संवाद में भी मोबाईल कमी ला रहा है। परिवारों में आपसी समन्वय भी समाप्त हो रहा है, जिससे दूरियां लगातार बढ़ रही है। युवा पीढ़ी, गृहणियां मोबाईल के माध्यम से फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, व्हाट्सएप आदि में अपना कीमती समय नष्ट कर रहे हैं। लगातार मोबाईल के जरिए से कई घंटे की चेटिंग में भी व्यस्त रहते हैं। गृहणियों के रसोई का साथी भी मोबाईल बन चुका है। युवा पीढ़ी किताबों से दूर होता जा रहा है। गीत-संगीत परिवारों का जीवन मोबाईल में कैद हो रहा है। न जाने मोबाईल की लत जीवन को किस मोड़ पर ले जा रही है?