अर्चना धींगरा
स्वामी योगेन्द्रानन्द शास्त्री के संयोजन व म.मं. स्वामी अनन्तानन्द महाराज की अध्यक्षता में श्री जगदीश आश्रम में आयोजित हुआ पंचम पुण्यतिथि समारोह
हरिद्वार, 28 सितम्बर। उत्तरी हरिद्वार की प्रख्यात धार्मिक संस्था श्री जगदीश आश्रम में ब्रह्मलीन स्वामी शांतानंद शास्त्री महाराज की पंचम पुण्यतिथि गरिमामयी रूप से सोशल डिस्टेसिंग का पालन करते हुए स्वामी योगेन्द्रानन्द शास्त्री के संयोजन व म.मं. स्वामी अनन्तानन्द महाराज की अध्यक्षता में समारोहपूर्वक आयोजित की गयी।
श्रद्धाजंलि समारोह को संबोधित करते हुए म.मं. स्वामी हरिचेतनान्द जी महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन स्वामी शांतानन्द शास्त्री जी महाराज सनातन संस्कृति के सच्चे संवाहक थे। उन्हांेने सदैव धर्म प्रचार व लोक कल्याण के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने षड्दर्शन साधु समाज व गरीब दासीय महापरिषद की स्थापना कर संत समाज की मजबूती के लिए अद्भुत व अकल्पनीय कार्य किया। उन्होंने स्वामी शम्भूदेव संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना कर संस्कृत उन्नयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
स्वामी कमलदास जी महाराज ने कहा कि जब पंजाब आतंकवाद के दौर से गुजर रहा था तब हिन्दू व सिक्खों के मध्य आपसी भाईचारा को बढ़ाने में स्वामी शांतानंद शास्त्री महाराज ने ऐतिहासिक योगदान दिया। उन्होंने तीर्थनगरी हरिद्वार में प्रथम पारद शिवलिंग की स्थापना कर शिव की महिमा को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य किया।
श्री जगदीश आश्रम के परमाध्यक्ष स्वामी योगेन्द्रानन्द शास्त्री ने कहा कि ब्रह्मलीन स्वामी शांतानंद शास्त्री महाराज एक महान आत्मा थे। जिन्होंने अपने ज्ञान व तप के माध्यम से सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति का परचम पूरे भारत में फहराकर सदैव समाज को एक नई दिशा प्रदान की। पूज्य गुरूदेव के पदचिन्हों पर चलकर संस्था सदैव लोक कल्याण व भारतीय संस्कृति की रक्षा को समर्पित रहेगी। स्वामी रविदेव शास्त्री व आचार्य हरिहरानन्द ने कहा कि धार्मिक संस्थाओं के संरक्षण व संवर्द्धन में स्वामी शांतानंद शास्त्री ने अभिभावक की भूमिका निर्वहन किया।
स्वामी केशवानन्द जी महाराज ने कहा कि महापुरूषों की जीवनशैली व उपदेश सदैव प्रेरणादायी होते हैं। ब्रह्मलीन स्वामी शांतानंद शास्त्री महाराज ने सदैव अपने जीवनकाल में गरीब असहाय लोगों की मदद कर राष्ट्र कल्याण में अपना अहम योगदन प्रदान किया।
भाजपा पार्षद दल के उपनेता अनिरूद्ध भाटी ने कहा कि संतों के दर्शन मात्र से पापों से निवृति व पुण्य की प्राप्ति होती हैं। संतों का जीवन सदैव परोपकार को समर्पित रहता है। उन्होंने कहा कि योग्य गुरू को ही सुयोग्य शिष्य की प्राप्ति होती है। स्वामी योगेन्द्रानन्द शास्त्री महाराज ने अपने गुरू के बताए मार्ग का अनुसरण कर संत समाज की सेवा करते हुए उनके अधूरे कार्यों को पूर्ण कर रहे हैं। इससे युवा संतों को प्रेरणा लेनी चाहिए। इस अवसर पर उपस्थित संतगण व भक्तों ने ब्रह्मलीन स्वामी शांतानन्द शास्त्री को भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित की।
इस मौके पर मुख्य रूप से म.मं. स्वामी ललितानन्द गिरि जी महाराज, स्वामी सच्चिदानन्द, स्वामी कमल दास, स्वामी सूर्यदेव, स्वामी कृष्णानन्द गिरि, महंत दिनेश दास, स्वामी विवेकानन्द, पार्षद अनिरूद्ध भाटी, विनित जौली, डॉ. डी.एन. बत्रा, राहुल बंसल आदि समेत अनेक संत-महंत व गणमान्यजन उपस्थित रहे