पीयूष वालिय
हरिद्वार में ईवीएम स्ट्रांग रूम में बंद होने के बाद अब सभी प्रत्याशी हार-जीत के गुणा-भाग में जुटे हैं। हालांकि कम मतदान से भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र में इसबार 59.13 फीसदी मतदान हुआ है। जो पिछले मतदान के सापेक्ष पांच फीसदी कम है। अब विभिन्न प्रत्याशी कम मतदान को अपने-अपने पक्ष में बताते हुए जीत के दावे कर रहे हैं। हालांकि कम मतदान का सीधा नुकसान भाजपा को होगा। इसके कई कारण हैं।
हरिद्वार में दलित पिछड़े और अल्पसंख्यक मतदाता करीब 52 फीसदी हैं। इस वर्ग का मतदाता सदैव चुनाव में बढ़-चढ़कर भागीदारी करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले इस मतदाता वर्ग ने इसबार भी मतदान में कोई कंजूसी नहीं की और ग्रामीणी क्षेत्रों में मतदान को 73 फीसदी के ग्राफ तक पहुंचा दिया। जबकि शहरी आबादी घरों में दुबकी रही और नगरीय क्षेत्रों में मतदान पचास फीसदी के आसपास ही बना रहा। मोटे तौर पर मतदान का यह संकेत भाजपा के खिलाफ है। इसका पहला कारण तो ये है कि सीट पर दलित पिछड़े और अल्पसंख्यक थोक वोटों पर कांग्रेस बसपा के सापेक्ष भाजपा की अंशत: हिस्सेदारी है। हालांकि भाजपा के लिए यह खुशी की बात हो सकती है कि इसबार इन थोक वोटों में कांग्रेस बसपा सहित निर्दलीय उमेश कुमार ने भी सेंधमारी की है। जिससे भाजपा को कम नुक़सान होगा। लेकिन शहरी क्षेत्रों में घटा मतदान भाजपा को दूसरी तरह से कमजोर करेगा। क्योंकि ज्यादातर शहरी वर्ग के मतदाताओं को भाजपा के पक्ष का माना जाता है। भाजपा को नुक्सान का दूसरा संकेत यह भी है कि मतदान उन विधानसभा सीटों पर कम हुआ है जिनपर भाजपा काबिज है।
भाजपा के नुकसान का गुटबाजी एक दूसरा आधार है । हरिद्वार में इस समय भाजपा के तीन गुट सक्रिय हैं। इनमें एक गुट पूर्व सांसद डा रमेश पोखरियाल निशंक का है तो दूसरा पूर्व मंत्री व नगर विधायक मदन कौशिक का है। जबकि तीसरे गुट को भाजपा के प्रदेश पदाधिकारियों का वरदहस्त प्राप्त है। इस चुनाव में त्रिवेंद्र रावत के प्रचार से भाजपा का एक गुट पूरी तरह नदारद रहा। एक दूसरे गुट की उपस्थिति भी औपचारिक ही रही। कम मतदान और इस विश्लेषण से यह तो साफ है कि हरिद्वार में भाजपा भले ही अन्य प्रत्याशियों पर भारी हो लेकिन पांच लाख वोटों से जीत के दावे से काफी दूर है।